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जय वर्धमान
विजय
प्रतिहारी : (सिर मुका कर) जो आजा । (प्रस्थान) मिला : (सोचते हुए) कुमार विजय और कुमार सुमित्र तो प्रातःकाल में
ही कुमार वर्धमान के साथ क्रीड़ा-वन में चले गये होंगे । वे तो निरन्तर कुमार के माथ रहते हैं । इन्द्रगज को वश में करने में मंभवतः उन्होंने कुमार की महायता की हो । एक व्यक्ति मे मतवाला गज कैसे वश में किया जा सकता है ! फिर कुमार वर्धमान की अभी आय ही क्या है !
(कुमार विजय और कुमार सुमित्र का प्रवेश) : (एक साथ) मम्राट् की जय ! सिद्धार्थ : विजय और मुमित्र ! कुमार कहाँ हैं ? विजय : (उल्लास से) महावीर वर्धमान अभी नहीं आये, मम्राट् ? मिद्धार्थ : कहाँ हैं वे ? अभी तो यहाँ नहीं आये । मुनता हूँ कि उन्होंने इन्द्रगज
को-उम मतवाले इन्द्रगज को वश में कर लिया ? मुमित्र : न केवल इन्द्रगज को वग्न् सर्प को भी। सिद्धार्थ : (आश्चर्य से) सर्प को भी? यह सर्प कहाँ था? और सर्प की वात
कमी ? बड़ी विचित्र बाने मुना रहे हो । इन्द्रगज को और सर्प को वश
में कर लिया ! विजय : हाँ, सम्राट् ! सर्प को भी। मुमित्र : हाँ, सम्राट् ! वे कुमार वर्धमान नहीं, महावीर वर्धमान हैं । विजय : सम्राट् ! जिस समय इन्द्रगज क्रोध से निरीह जनों को कुचलता हुआ
आ रहा था महावीर वर्धमान दोनों हाथ फैला कर उसके मामने खड़े
हो गये। सिद्धार्थ : (कुतूहल से) सामने - ‘सामने खड़े हो गये ! विजय : हाँ, सम्राट् ! सामने खड़े हो गये । हाथी ने चिंघाड़ते हुए जब अपनी
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