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जय वर्धमान
विजय : (सोचते हुए) हिंसा हो या न हो, किन्तु उस हाथी ने क्रोध में आकर
यदि कुमार पर आक्रमण कर दिया तो बड़ा अनर्थ होगा। सुमित्र : (लापरवाही से)कुछ नहीं । क्या अनर्थ होगा ? महाराज सिद्धार्थ
हम दोनों को बन्दीगृह में डाल देंगे। हम लोग कुमार के साथ क्यों नहीं गये । हम दोनों ने उनकी रक्षा क्यों नहीं की। इसी अपराध पर वे हम लोगों को बन्दीगृह में अवश्य डाल देंगे।
विजय : क्यों डाल देंगे? हम लोग तो कुमार के साथ जाने के लिए तैयार थे,
कुमार ने ही हमें रोक दिया । इसमें हमारा क्या अपराध ? सुमित्र : अपराध यही कि हम लोगों ने कुमार वर्धमान को हाथी का सामना
करने के लिए जाने ही क्यों दिया? उन्हें रोका क्यों नहीं। विजय : मैंने तो उन्हें रोका था। वे रुके ? कहने लगे-हाथी यदि मुझ पर
आक्रमण करे तो कर दे। सुमित्र : जो भी हो, यह अच्छा नहीं हुआ। कुमार अकेले ही चले गये । वे
हम लोगों के साथ जाने पर अनिष्ट की बात कह रहे थे पर हम
लोग समझते हैं कि उनके अकेले जाने से ही अनिष्ट हो सकता है। विजय : क्या कहा जाय ! प्रभु पार्श्वनाथ रक्षा करें ! कितना अच्छा होता
यदि वे हम लोगों को अपने साथ ले जाते ! यदि वह हाथी कुमार पर आक्रमण करता तो हमें उनकी रक्षा का अवसर मिल जाता।
(मुस्करा कर) कुछ पुरस्कार मिल जाता ! सुमित्र : रक्षा तो हम लोग करते ही। फिर हमारे धनुष-बाण का कौशल भी
जनता पर स्पष्ट हो जाता। ऐसे ही अवसर पर तो धनुष-बाण की
उपयोगिता है। विजय : (ठंडी सांस लेकर) यह अवसर की बात है।