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________________ भगवान् महावीर की २५०० वीं निर्वाण-तिथि के अवसर पर हिन्दी के सुप्रसिद्ध नाटककार डा० रामकुमार वर्मा ने 'जय वधमान' नाटक का प्रणयन कर अपनी श्रद्धांजलि अपित की है। महावीर स्वामी आज देश, काल, जाति और सम्प्रदाय की संकीर्ण सीमाओं में आबद्ध न रहकर विश्व-विभूति बन गये हैं। अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, इन्द्रिय-निग्रह, समता, ममता आदि का उपदेश आज जैन समाज की सम्पत्ति न होकर मानव मात्र के कल्याण का पथ प्रशस्त करने वाला प्रकाश-स्तम्भ बन गया है। ___ 'जय वर्धमान नाटक के पांच अंकों में इन्हीं शाश्वत मूल्यों को नाट्य-संवाद द्वारा मुखरित करने का सफल प्रयास है । लेखक ने भगवान महावीर के जिन जीवनप्रसंगों का चयन किया है उनकी आधार-भूमि जैन ग्रन्थ तथा जैन शास्त्र हैं जिनकी प्रामाणिकता असंदिग्ध है । सिद्ध नाटककार होने के नाते डा० वर्मा ने मंचीय तत्त्वों को दृष्टि से ओझल नहीं होने दिया है । हमारा विश्वास है कि यह नाटक भगवान महावीर की विपुल गुण-राणि में से सत्य, शिव और सुन्दर के दो-चार कण पाठक और प्रेक्षक को भेंट करने में अवश्य सफल होगा । अनन्त पागवार को समेटने की स्पहा की अपेक्षा श्रद्धापूर्वक अंजलि में संजोये नैवेद्य के छोटे क्या कम महत्त्वपूर्ण हैं ? विनयावनत वन्दना का एक स्वर समस्त व्योम को गंचित करने की शक्ति रखता है।। __ वीतराग वर्धमान को प्रशस्ति न तो इस नाटक का लक्ष्य है और न लेखक को काम्य ही। भगवान् वर्धमान की जय-जयकार के समय केवल विनीत प्रणाम निवेदित करना ही नाटककार की आस्था का परिचायक है।
SR No.010256
Book TitleJay Vardhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamkumar Varma
PublisherBharatiya Sahitya Prakashan
Publication Year1974
Total Pages123
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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