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'अध्यात्म' और 'सिझाय' में बड़ी सुन्दर-सुन्दर उपदेशात्मक कथाएँ हैं । तुम ऊपर के आँकड़ों को पढ़ कर थक गये होगे, इसलिए अध्यात्म के अन्तर्गत कुछ कहानियाँ सुनो। नीचे लिखी कहानी 'नवकार जाप महिमा' के सम्बन्ध में है । सुनो :
एक भावक की एक पत्नी थी पर उसने अन्य एक स्त्री को भी पत्नी बना लिया। दूसरी पत्नी पहली से ईर्ष्या करती थी । एक दिन उसने घड़े में सर्प देखा । उसने पहली पत्नी अर्थात् अपनी सौत से कहा कि उस घड़े से सामान निकाल लाओ। दूसरी स्त्री ने देखा कि उस घड़े में सर्प है। उसने 'नवकार मंत्र' का जप किया और घड़े में हाथ डाला। वह सर्प फूल की माला में परिवर्तित हो गया ।
'रत्नकुमार सिझाय' में एक कथा है :
रत्नकुमार का विवाह एक सुन्दरी से हुआ किन्तु १६ वर्ष की आयु में ही उसने राग्य लेकर जैन धावक धर्म को अपना लिया। उसकी पत्नी अत्यन्त संयम के साथ अपने सास-ससुर के संरक्षण में अपना जीवन व्यतीत करती रही। युवावस्था में ही इस प्रकार विरक्ति और संयम धारण करना वास्तव में सराहनीय है।
महावीर वर्धमान का विवाह हुआ था या नहीं, इस पर मतभेद है । दिगम्बर साहित्य में उन्हें बाल ब्रह्मचारी कहा गया है पर श्वेताम्बर साहित्य में उनका विवाह राजपुत्री यशोदा के साथ हुआ। किन्तु महावीर वर्धमान का यथार्थ जीवन गृह-त्याग के बाद ही आरम्भ होता है, अतः विवाह की बात का कोई विशेष महत्त्व
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नहीं है । यदि श्वेताम्बर साहित्य के अनुसार उनका विवाह हुआ भी हो और उन्होंने १० वर्ष वाद वैराग्य ले लिया तो उनकी पत्नी यशोदा का जीवन भी विरक्ति और संयम से परिपूर्ण समझा जाना चाहिए । १८ वें तीर्थकर स्वामी नेमिनाथ और रमा स्वरूपा राजमती के विवाह के उल्लेख ने यदि विवाह की संभावनाओं को प्रखर कर दिया तो आश्चर्य ही क्या ! संयम और नियम की बात तो जैन साहित्य में सर्वोपरि है। इस सन्दर्भ में विजय श्रेष्ठ मिझाय में जिणदास श्रावक की कथा उल्लेखनीय है :
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