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महा साधना के क्रम में प्रभु
जहाँ-जहाँ भी जाते। युवक-युवतियाँ, वाल-वृद्ध सव
सुनकर दौडे आते॥
वस्त्र हीन निज दिव्य रूप मे
महा साधना तत्परआते देख स्वय सव करते
तन-मन सकल निछावर॥
प्रभु की पावन चरण-धूलि पर
राज-मुकुट लुठित थे। जीवन-जीव-जगत के कोई
तत्त्व नहीं कुटित थे।
हप्तामलक गृष्टि थी सारी
दृग मे ब्रह्म समाया । जो भी जो सपना ले आया
अपना सर्वस पाया ।।
जय महाबीर /91