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महावीर तैयार खडे थे
मन को सबल बना के। मन मे पावन प्रभा समुज्ज्वल
की नव-ज्योति जगा के॥
इधर ज्येष्ठ भ्राता ने नूतन
उत्सव एक रचाया। दीक्षा के मगल क्षण के हित
पूरा नगर सजाया ।।
नये महोत्सव की खुशियाँ थी
व्यक्ति-व्यक्ति पर छाई। पर-घर मे आनन्द, लहर की।
धारा उमडी आई।
मोने चांदी के कलशो मे
पावन जल भरवाया। इन्द्र आदि देवो ने प्रभु का
सव अभिषेक कराया ।।
जय महावीर / 83