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भोली-भाली बडी मुहसनानाम पडा था-पुण्य-दर्शना।
उसे देख सब खुश होते थेपुण्य सलिल से दृग धोते थे।
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सुख-वैभव सव भरा-पुग थासभी भले कोई न बुरा था।
एक कामना सबके मन मेंवसी हुई थी राज सदन मे।
वने नही वे परम विरागीबने मधुर जोवन-अनुरागी।
यही रहे, यह धरा न त्यागेहमे छोडकर कभी न भागे।
किन्तु, तपस्वी महावीर नेकव सोचा यह परम धीर ने
उनके मन मे लगन लगी थीभव के हित की जोत जगी थी।
66 / जय महावीर