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उनका सत्य स्वरूप निरन्तरसदा प्रकाशित निखर-निखर कर।
उनको कुछ भी दोष न रहतामन मे दुख अवशेष न रहता।
बुद्धि विमल खुद सब कहती हैपास शारदा नित रहती है।
लेकिन जग के प्राणी कैसेसमझे को है निर्मल ऐसे ।
जग की लीक निराली होतीदृग भरमाने वाली होती।
उसको शाश्वत ज्ञान न होतापत्थर को आँसू से धोता।
आँख हृदय की जव खुलती हैकालिख मन की जव धुलती है।
तभी समझ वह कुछ पाता है'विश्व निराला' -कह जाता है।
जय महावीर /61