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खेल-खेल
मे वर्धमान को
कधे पर ले भाग चला। उस बाल-मडली को वह सहसा त्याग चला।।
अनायास
जैसे ही
लेकिन
वह भागा बालक
अन्य सभी घबडाते हैं । कोई वर्धमान को
बचा नहीं वे पाते है।
जैसे ही वह भागा क्षण मे
विकट-वेश धर लेता है। अपना बदन वढाकर भीषण
दानव का कर लेता है।
कधे पर थे वर्धमान वे
तनिक नही घवडाते है। वज्र मुप्टि से उसके सिर पर
घूसा एक लगाते है ।।
जय महावीर /55