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तरह-तरह के मोदक लड्डू
सबने खूव लुटाये । सभी मगन थे आज धरा पर
स्वय महाप्रभु आये ।।
इन्द्रराज फिर लेकर उनको
राजमहल मे आये। त्रिगला के ही स्वर्ण-सदन मे
चुपके उन्हे सुलाये ।।
प्रभु की लीला, जैसे ही वे
धरती पर है आते। जाग उठे सव वडो खुशी से
अपने मोद मनाते ।।
होने लगी धरा पर फिर से
उत्सव की तैयारी। राज महल फिर गूंज उठा औ'
जुड आये दरवारी।।
जय महावीर / 47