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धन्य कुक्षि त्रिशाल की पावन
__ निर्मल परम पवित्र। तेज-पुञ्य अवधारित जिसमे
जग का शाश्वत मित्र।
आज विश्वमाता है त्रिशला
जननी परम पुनीत । गूंजेगे इस जग मे उसके
भाग्य विभव के गीत ।।
धन्य स्वय सिद्धार्थ कि जिन को
प्राप्त हुआ यह इष्ट। पायेगे जो जग मे ऐसा
उत्तम पुत्र अभीष्ट ॥
जय महावीर /29