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दया करो अब तम मिट जायेकलुष न मन मे कुछ रह पाये ।
शुभ्र आत्म-दर्शन का क्षण होपावन भूतल का कण-कण हो ।
नमन तुम्हें करता हूँ प्रतिपल - तेरी करुणा मेरा सम्बल ।
हो सकल्प हृदय का पूरारहे न कोई भाव अधूरा ।
चरणो पर मैं नत मस्तक हूँतेरे दर्शन का चातक हूँ ।
तेरा जीवन पावन धाराधन्य हुआ पा भूतल सारा ।
पूर्ण कामना हो अन्तर की - शक्ति जगे नव मेरे स्वर की ।
देव दयामय करुणा सागर - सकल सृष्टि है तेरा अनुचर ॥