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अपने सब शिष्यो के सग हौ
दीक्षा प्रभु से लेकरइन्द्रभूति भी हुआ विश्व मेपुण्य लोक का सहचर ॥
प्रभु ने फिर विचरण कर जग मे
ज्ञान-किरण विखराई ।
घने तिमिर मे पडे मनुज को
सच्ची राह बताई ॥
पूर्ण बहत्तर वर्ष हुए जव -
देश-देश के
पावापुर मे आ के । ज्ञान-पिपासुजन को पास विठा के ॥
प्रभु ने अन्तिम दिव्य देणना
नवको वहाँ सुनाई ।
प्राणिमात्र के दिन की सारी
वाते वहा
बनाई ॥
महावीर 135