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प्रभु भी अपनी चरम शान्ति से
सवको दर्शन देते। अहोभाग्य था सभी जनो का
उनसे आशिप लेते।
उनकी ज्ञान-विभा का सबको
नव प्रकाश था मिलता। परम विरागी का प्रभाव था
सब जीवो पर पडता॥
सुरभी पुर से राजगृह को
चले विमल मन प्रभुवर। गगा पार चले थे करने
एक नाव मे चढ कर।।
उसी समय पाताल लोक का
सुदप्ट्र देव अकुलाया। पूर्व जन्म का वैर अचानक
उसके मन मे आया ।
116/जय महावीर