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उठा पुन वह, जहर अँगूठे.
मे प्रभु के फिर दे मारा। किन्तु चकित था, देख कि उससे
निकली दुग्ध धवल धारा॥
शीश उठा जो देखा प्रभु को
शान्ति तनिक मन मे आई। प्रभु के मुख-मण्डल की आभा
धरती तक पर थी छाई॥
समझ गये प्रभु यही समय है
___ इसको कर्म छुडाना है। सर्प-योनि से इसे उठा कर
देव-योनि मे लाना है।
साधु विमल था, किन्तु ग्रहो के
फेरे मे भरमाया है। पथ से स्वय भटक कर ऐसा
आज विपम बन आया है।