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गाँव-गाँव मे घर-घर ढूंढावन, पर्वत पर जा कर ढूंढा। यहाँ वहाँ सब जगह अटकतारात-रात भर रहा भटकता।
पता न लेकिन कुछ भी पायासारी रात रहा भरमाया। खूब सवेरे जब आता हैपास वही गो-धन पाता है।
प्रभु है अविकल ध्यान लगायेगो-वन पास उन्ही के आये। गो-पालक को लगा कि जैसेउसने ही भटकाया ऐसे ।
मूढ हृदय मे क्रोध जगा के
म्सा बैलो का ही ला के। प्रभु पर खीच चलाया तत्क्षणअपने-पन से होकर उन्मत ।
ज्य महादीर / 103