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• Jivu Bai Jain Temple Granth Bhandar :
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सम्यकवंत सुभाव धरि जीव, कुगत माहि होहि झित ।
.: तित तितं त्रिकाल वंदित भविक, भावसहित सिर नाय नित। Ends -पुण्य पाप जग मूल पचीसी, सावु परिसह बीस रु दोय ।
छयालिष निको तजिबी, श्री जिन धर्म पचीसी होय ॥ अनादि बत्तीसी समुदघात जो मूढाष्टक वरन - सोय । सम्यक औ वैराग्य पचीसी परमात्म छत्तीसी जोय ॥ ६ ॥ नाटिक नाम पचीसी सुदर उपादान अरू निमित्त सवाद । चौबीस जिनवर जयमाल, पढतै उपजै अति प्रहलाद ।। पच इन्द्रनि की परम चौपई, फुनि पचीस ईश्वर निरणादि । कर्ता कोन अकर्ता को है, सब विधि जनित जहुउनमांद ॥ ७॥ दिष्टांत पचीसी मन बत्तीसी सुनि प्रारिण अपनी मन लाय । सुपन्न छत्तीसी जग की रचना सु ा बत्तीसी सुनत सहाय ॥ जोतिक ग्रथ कवि त्रछैच्यारिक पद परभाति हर्ष धरि गाय ।
फुटकर कवि नपमं पद महिमा ब्रह्म विलास समधि सब प्राय ॥ ८ ॥ Scribal remarks ::
प्रथग्रंथकरतानाम लिख्यते ।। चौपई-जबूदीप मै दछन भत । तामै प्राजं खड विस्ततं ।
तहां उग्रसेन पुरथांन । नगर आगरौ नाम प्रधान ॥ १ ॥ तहां बस जिन धर्मी लोक । पुन्यवंत बहुगुन के थोक । । । वुद्धिवंत वहु चरचा करै । अरे भंडार धर्म को भरै ॥ २ ॥ : : नरपति तहां - . राजै अवरंग । जाकी माग्या बहै अभंग ।। ईत भीत व्याप नहिं कोइ । यह उपगार नृपति को होई ॥ ३ ॥ तहाँ न्यति उत्तम बहु बसैं । तामैं वोसवाल पुनि लसँ । तिनके गोत बहुत विसतार । नाव कहत न आवै पार ॥ ४ ॥ सबतें : 'छोटो गोत . . प्रसिद्ध : । नाव कटारिया रिधि संग्रधि । दशरथ साह पुण्य के धनी । तिनके रिधि वृद्धि अतिधनि ॥ ५ ॥ तिनके पुत्र “लालजी । भये । धरमवंत गुनगनानिरमये । तिनके पुत्र भगोतिदास । जिन यह कीनौं ब्रह्मविलास ॥ ६ ॥ जामै निज आतम की कथा । ब्रह्म विलास नाम है यथा । । । बुद्धिवंत हसियो मति । कोइ अल्पमती भाषा कबि होय ॥ ७ ॥ भल चूक निज नैन निहारि । शुद्ध कीजियो अर्थ विचारि । संवत सत्रहस . पंचावन । रितु बशतं बैसाख सुहावन ॥ ८ ॥ सुकल पक्ष त्रितिया रविवार । संघ चतुर विधि. को जैकार । पढत सुनत सब :: को कल्यान । प्रगट होय निज प्रातमग्यान If ६ ॥