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No. 1
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Date of the Original
Date of the
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Subject
Begins
Ends
Description Country paper, rough and grey, Devanagari characters in
bold, big, legible and good hand-writing; borders ruled in four lines; red chalk and yellow pigment used; it is in a good state of preservation and a complete work, written in Hindi verse.
No. 2
Jain Granth Bhandars In Jaipur & Nagaur
BANDA UDAI SATTA CHOPAI
-SHRI LAL -12" x 6"
-- 6 Folics
Author
Size Extent
-V. S. 1881
Ref. No. 823
-V. S. 1905
-Jain Sidhanta
विमल जिनेश्वर प्ररणभु पाँय, मुनिसुव्रत कूं सीस नवाय । सतगुरु सारद हिरंदै धरू वंध उदयं सत्ता उचरू ॥१॥ वंध उदै सत्ता वखारौ, ग्रन्थ त्रिभंगीसार ते जारिण । सुद्ध असुद्ध सुधा रस नारण, अल्प बुद्धि मैं करूं बखाण ||१२|| . साहिव राम मुझ क बुध दई, नगर पंचेवर माहि लही । मुझ उतपत डगी के माहि, श्रावक कुल गंगवाल कहाहि ॥ १३ ॥ काल पाय के पंडित भयो, नैरणचंद के शिष्य मध्यो । मुक्त दर्शरण दियो || १४ || जाकर रहत भयो ।
नगर पचेवर माहि गयो, श्रादिनाथ पाप कर्म तो बिछत भयो, लाव शीतलं जिनकू करि परिणाम, स्व पर कारण तें कहें बखार ॥१५॥ संवत् अठारह से का कहया, प्रवर इक्यासी उपर लह्या ।
पढत सुरगत अघ खय.. होय, पुन्य बंध वुधि बहु होय ॥ १६ ॥ इति श्रीउदय बंध समाप्ताः ।
CHANDAN MALAYAGIRI KATHA —-BHADRASEN
-11"x5"
-6 Folios...
D scription ~~~Country paper, thin, rough and greyish, Devanagari characters in bold, clear and beautiful hand-vriting:.