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________________ . 110 ] Jain Granth Bhandars In Jaipur & Nagaur तिलक समान श्री वादिचन्द्रपति उपज्या । ता करि भव्य कमलनिकों विकास करने वाला ज्ञानसुर्योदयनाटक रच्या ॥ असे सूर्य श्री वादिचन्द्र करि विरचित ज्ञानसूर्योदयनाटक विष चौथा अध्याय समाप्त भया ॥४॥ Scribal remarks: मोहादिक भाव सब उपाधि रूप चेतन के दूखदाई जानि वृथा चित्त ना भ्रमाइयै । ज्ञानादिक भाव ते तो श्राप ही के हैं स्वभाव तिनको हितकारी जानि चित्त को रमाइयै ।। जिनवानी जोर विन भई. देशं वचनिका सार । ... पढो पढा बहुचित्त वहु बाचऊं लिख हुलिख में सुधार ॥५॥ ॥छप्पय॥ वंदो श्री अरहन्त मोक्षपुर पथ प्रकाशक । वंदू सिद्ध समूध्यान जिस भ्रमतम नासक ।। वंदू साधु समस्त सुद्ध रत्नत्रय साधक । वंदू पून जिनधर्म जीव षट्काय अबाधक ॥ ये चार परम मंगल विमल ये ही लोकोत्तम विदित । ये ही शरण जगजीव को जानि भज उर जो चहत हित ॥६॥.......... ' इति श्री ज्ञानसूर्योदय नाम नाटक की वनिका सम्पूर्ण ॥ छ ॥ मीती जेठ शुक्ल द्वितीया २ वार शनिवार संवत् १६२६ का नै पूरण कीई ॥ मीती भादवा सुदि १४ नै मुकंदराम जी बड़जात्या की मा नै व्रत पूर्ण की त तिव में मदिर जी चढाया भीमराज की काकी गुलाब नै संवत् १९५० का में निछावर का लाग्या ५) १० माना । Size . No.3 .." Ref. No.57 . KARMA VIPAKA SUTRA CHOPAI Author -111x51" - Extent .. -127 Folios: ...... .. ............ Description --Country paper, rough and grey; Devanagari characters in big, bold and elegant hand-writing; it is in a fair .. : : condition; it is a complete manuscript, written in Hindi. Date of the Copy . . -Fairly old. ....... Subject : SIDHANTARAN .. he . .
SR No.010254
Book TitleJaipur aur Nagpur ke Jain Granth Bhandar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherUniversity of Rajasthan
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationCatalogue
File Size7 MB
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