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106 1
Ens
No. 10
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Jain Granth Bhandars In Jaipur & Nagaur
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Subject
Begins
कासमीरपुर मडवासिणी, देह नारण अन्नारण पिल्लेइ ॥ कवियरण नि तु मालली, दिउ मुझ बुधि विशाल ॥ जिम विक्रम राजा ताउ, कहउ प्रबंध रसाल ॥ १ ॥
- संवत पनरहसइ असीइ "१५८०", ए चरति निसुणी हरसीयइ । साहसीक जो होइ निसंक, कायर कंपई जे वलि रंक ॥। ६०३ ॥
श्री उवएस
किरण प्रपूर |
तिरिण विनोद चउपई रसाल । कीधी सुरगता सुख विसाल ।। ६०६ ।। ॥ इति श्री विक्रमादित्यनृपचरित्रं समाप्तं ।।
रणथह
।। ६०४ ।।
तेह नइ वाचक हर्ष समुद्र जसु जस उज्जवल पीर समुद्र । सुविनेयवि नयांवुधि एह । रचिउ प्रबंध निरषि तिरि त्येह ।। ६०५. ।। पंच दंड नामा सु चरित्र | देखी ने हनु ध विचित्र |
Ref. No. 1662
YASHODHAR CHARITRA
-VASAVSEN MUNI
-101" × 51"
-- 76 Folios, 13 to 15 lines per page, 44 letters per line. Country paper, thin and greyish; Devanagari characters in: small, legible and good hand-writing; borders ruled in for lines; yellow pigment used; edges of the first and last. folios worn out; the condition of the manuscript is satisfactory; it is a complete work.
Fairly old
-CHARITRA
-जितांरातीन जिनान्नत्वा सिद्धान् सिद्धथसंम्मदः सूरीनाचारसंपन्नानुपाध्यायास्तथा
यतीन् ॥ १ ॥
जनन्या समवेतस्य यशोधर
चरितं पावनं वक्ष्ये
यथाशक्ति
महीभुजः । यथागमं ।। २ ।