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Sanglieeji Jain Temple Granth Bhandar
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जो विचारशील महात्मा स्वर्ग और मोक्ष का सुख चाहते हैं उन्हें इन पाप व्यसनों को छोड़ देना चाहिए। इन व्यसनों के छोड़ने पर ही वे धर्म ग्रहण करने के पात्र बन सकेगें, क्योंकि अविवेकी और व्यसनों के सेवन करने वालों की अच्छी गति नहीं होती । वे सर्वत्र निंदा के पात्र होते हैं, और इनके द्वारा धर्म को भी कलंक लगता है। न मुझे व्याकरण का ज्ञान है और न न्याय का, और न मेरी पुराण और काव्यों में गति है । इसलिए यह सम्भव है कि इस अन्य में बहुत सी त्रुटियां रहीं होंगी। विद्वानों से मेरी प्रार्थना है कि इस ग्रन्थ का संशोधन । करें, क्योंकि इसके द्वारा भी सर्व साधारण लाभ उठा सकेंगे। जो इसका अभ्यास करेंगे अथवा बार-चार मनन करेंगे और पढ़ेगें वे सुखी होवेंगे। उनकी वृद्धि दिनो दिन निर्मल होती रहेगी
और पाप वासना उन्हें कभी छू तक नहीं सकेगी। नदी तट गच्छ में श्री भीमसेन मूनि हो गये है । उनकी कृपा से मुझ मन्द बुद्धि ने यह ग्रन्थ रचा है । अव इसका विस्तार करना सज्जनों के हाथ है । मुझ मन्द बुद्धि सोमकीति के बनाये हुए इस ग्रन्थ का जो श्रद्धा और भक्ति सहित स्वाध्याय करेंगे और सुनेगें वे नियम से सुख सम्पत्ति के भोगने वाले होवेंगे। Scribal remarks :
विक्रम महाराज की मृत्यु के बाद १५२६ सम्वत् में माघसूदी प्रतिपदा सोमवार के दिन मैंने (सौमकीति) इस ग्रन्थ को समाप्त किया। इति समाप्तोऽयं ग्रन्थः ॥
No. 9
Ref. No. 566 SRUTABODH Author
--KALIDASA : Size
-11"X51" Extent --7 Folios, 5 lines per page, 40 letters per line. : Description -Country paper, thin and grey; Devanagari characters in big, .
legible and good hand-writing; borders unruled, folios
No. 1 blank, edges of some of the folios slightly damaged; condition of the manuscript is good; it is a complete work, . . . :
written in Sanskrit. Date of the - Copp . .. .. --V. S. 1891 * Subject -ALANKAR :: : Begins -श्री गणेशसाय नमः ॥
छन्दसां लक्षणेन श्रुतमात्रेण वुध्यते तमहं । ... कथिष्यामि श्रुतबोधविस्तरम् ॥१॥ Ends. .. - -भो भुमि श्रियमातनोतियजलंवृद्धिखंवृद्धिर्मति ,
सो वायु पर दूरदेशगमनं तं व्योम शुन्यं फलम् ।