SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Sangheeij Jain Temple Granth Bhandar [ 93 - गाथा -विहिण गहि उणविहिं रोहिणीरिरकं पंचवासाणि । ...... - पंचयमासा जावऽऽववचासां तमिररकम्मि ॥१॥ - वसुनंदि प्राचार्य पांच वर्ष पांच मास को ही व्रत कह्यो छै। और भी एक साख .... लिख जै छै । सकलकीर्ति जी नाम प्राचार्य व्रत कथाकोश मध्य ऐसे कह्यो छश्लोक --रोहिन्या त्रीणि वर्षाणि क्रियते च सुखार्थिनः । ___ यथाशक्तिः तथा कार्य नियमों हि शुभपदः ॥ सकलकीर्ति तीन वर्ष की ही मर्यादा लिखी छै । और एक साधरमी ऐसा भरम . उपजावै छै कि यो रोहिणी नक्षत्र कोई शुभाशुभ करवा लायक छ ? ताको समाधान मरु देश में : कृतिका नक्षत्र में मेघ बरसै तब कृतिका कल्याणि कहै छै । व्योपारी के व्यापार करवा की पासा . . १९. वर्धे और किताक बडभागी राजा पुष्य नक्षत्र में ही क्षोरकर्म करावे है। स्वाति नक्षत्र में मेघ की बूद को समुद्र की सीपं का मुख में प्राप्ति होय तें मोती जमै छ। बालक को जन्म अनिष्ट- ... । कारी जाण जै । पूर्वाषाढ नक्षत्र में मेघ गरजा होय तो संवत्सर श्रेष्ठ होय और विवेकी पुरुष . विवाहादिक गमनागमन शुभ कार्य मूहर्त देख के करै छै । सो मूहर्त भी तो शुभाशुभ ग्रहों को संकेत ही है । और भी एक नक्षत्र फल नक्षत्र दिजे छै। गर्भवती स्त्री तथा धोडा कै छानि का घर में सूधी सूतां छानिका स्त्रों में होर चांद की चांदनी कदाचित' दिखे तो चांद ग्रहलो बालक .. होय । अर चौड़े सोवे तो दोष नहीं। घोंडी का बछेरा बछेरी न चांद मार जावे छै । और भी ... एक साक्षि गर्भवती स्त्री ग्रहण न देखती जाय और नाड़ो बांधती जाय तो बालक दुमाथ्यो होय । भावार्थ-माथो लम्बो होय सो या बात- शास्त्रां में लिखी है तीसु नक्षत्र फल सत्य ही छ.। जैसे. रोहिणी नक्षत्र भी. शुभाशुभ को कर्ता छै । जैसे चक्री तथा अर्ध चक्री दिग्विजय का. समय में समुद्र तथा विजया हिमवान पर्वत के समीप जाय तो धरवै तब देव विद्याधर -: प्राण. मिले । कृष्ण नाम. नारायण क्षार समुंद्र के निकटवर्ती तेलो कियो तव देव अश्व स्वरूप धारि कृष्ण ने समुद्र में ले गयो । द्वारका बसाबाने निर्भय जमीं वताई। वो तेलो कामार्थी निमित्त - है.। : पुर्णाथि निमित्त नहीं तैसे. ही रोहिणी नक्षत्र को भी व्रत कामार्थी निमित्त है। पुणाथि - निमित्त नहीं । तैसे ही रोहिणी नक्षत्र को भी व्रत कामार्थी जन का करबै योग्य छ । मनोकामना . सिद्ध करै छै । जब संसारी जीव अनिष्ट वस्तु की विकल्प उपजै छै तब भेरु भोम्या क्षेत्रपाल .. मानतो फिरे छै । सो वां देवता सौ यो ही प्राछो छ । - No. 8 Author Size: :. Extent" SAPTA VYASAN CHARITRA -BHATTARAK SOMAKIRTI -12" x 81" : --109 Folios, 13 lines per 'page, 46 letters: per line. .
SR No.010254
Book TitleJaipur aur Nagpur ke Jain Granth Bhandar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherUniversity of Rajasthan
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationCatalogue
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy