________________ 3 जैनकथा रत्नकोष नाग पांचमो. खो, एटले ते पण चकोर पदीयें ढोली नांख्यो. ते जोश राजायें अत्यंत क्रोधायमान थने ते पदीने मारी नांरव्यु. तदनंतर थोडी वारमा उपरथी अजगर पड्यो, तेने जोड्ने राजाने पश्चात्ताप थयो, जे अरे ? में बहु काम कां. जे निरपराधी पदीने मारी नांख्यु. मने तो ते पदीयें बचा व्यो,नहीं तो था अजगरना मुखमांथी नीकलेढुंजे फेर तेने ढुं जल मानी पान करत तो तरत मरण पामत. परंतु या पदी घणोज मारो नपकारी तथा दयालु थयो, पण में कां तेनो नपकार न जाणतां उलटा तेनां प्राण लीधा ? हा हा धिक्कार होजो सुजने जे में एवं अविचायुं काम कडे? था प्रमाणे राजाने खेद थयो. कयुं ले के,श्लोक // क्रोधप्राप्तौ हि क्रोधस्य, फलं समाति मूढधीः // शोचत्येवाविवेकितं चकोरघातकेशवत् // 1 // ए दृष्टांते कोइ पण काम उतावलें करवाथी या पदीघातक राजानी पेठे पश्चात्ताप करवो पडे // 11 // हवे दृष्टांतशतक ग्रंथनो कर्त्ता पोतानुं नाम कहे . // श्रीलंकारख्यगणे गणीश्वरगुरुः श्रीकेशवाख्यः सुतः,शिष्येणाशु कृतं वरं निजधिया दृष्टांतकानां शतम् // बंदोलकतिशब्दशास्त्ररहितं काव्यं यदा नि मितं, तत्सर्व मुनितेजसिंहकषिणा धार्विशोध्यं वरैः॥ 10 // इति दृष्टांत शतक नामक ग्रंथ बालावबोध अने कथा सहित समाप्त // इति श्रीजैनकथा रत्नकोष पुस्त कस्य पंचम नागः समाप्तः॥