________________
२० जैनकथा रत्नकोष नाग पांचमो. प केई जीख मागे घणा जी, जिहारे जिहारे आवे पुण्यनो नेह हो ॥ज० ॥ ॥ जोरालो जोरालो होय जे जेहथी जी, ते तेहने ते तेहने गंजे त तकाल हो ॥ जगें मन जगें मन गला गलनी परें जी, एक एकनो एक एकनो जाणो काल हो ॥ ज० ॥ ॥ जावजीव जावजीव जो कोई पु एयथी जी, राज कुंति राज ढुंति भ्रष्ट न थाय हो ॥ उत्कृष्टो उत्कृष्टो तो
आरंन करी जी, सातमी ते सातमी ते नरके जाय हो ॥ ज० ॥ १० ॥राज काजे राज काजे केई रणमा मरे जी, रंगीला रंगीला जे राजान हो। राज तेहने राज तेहने कांई काजें आवे नहीं जी, तो तेहy तो तेहखें की जे गुं मान हो ॥ ज० ॥ ११ ॥ सुत बंधु सुत बंधु वधू आदे सहू जी, प रिकर ने परि परिकर ने माहरी 'पून हो॥आगमानी आगमानी सदा चा ले अ जी; पण नली पण नली ए बांधी मूठ हो ॥ ज० ॥१॥ आपगर जें आपगरजें सदु आवी मिले जी, परगरजे परगरजें न ममें को पाय हो। कुण माता कुण माता पिता नाई जारजा जी, वेकारें वेकारें ए सवि बद लाय हो ॥ज॥१३॥ जन्म जरा जन्म जरा अने यम चोटथी जी, कांई राखी कांई राखी न सके कुटंब हो ॥ तेहने काजें तेहने काजें विविध विटं बनाजी, कुण सहे कुण सहे करे कुए दंन हो ॥ ज॥१४॥ कवि उदय कविनदय रतन कहे एटले जी, अग्यासीअन्यासीमी थई ढाल हो॥ केवली ते केवली ते जुवननानुनणेजी, चंमौलि चंमौली सुण नूपाल हो ॥१५॥
॥ दोहा ॥ ॥ सरस गीत श्रवणे सुटुं, रमणिक जो रूप ॥ जला गंध नित नो गएँ, रस आस्वाउं अनूप ॥ १ ॥ फरस सुकोमल फरसियें, ए पंच विषय सुख देखि, मान करे को मढ नर, ते पण मोहविशेष ॥ २॥स॥१५७०॥
॥ ढाल नेव्यासीमी॥ ॥ रे मन पंखीधा म पडीस पिंजरे,संसार माया जाल रे॥ ए देशी॥ रे मन मूढ तूं म पडीश मोहमां, ए विषयनां सुख देखि रे ॥ एत्रांकणी॥ जोगवतांग जलां नासे, विषय ए विषरूप रे ॥समयांतर ते विरस लागे, सीत समे जिम धूप रे ॥रे॥ १ ॥ लीला विषयनी सदा लागे, अज्ञानी ने अनूप रे॥ ज्ञानी नर ते इम गणे ए, केवल दुःख रूप रे ॥रे० .॥ २ ॥ सुख तो सरसव जेटलुं ने, फुःख तो डूंगर मान रे॥ धिग पडो