________________
२४६
जैनकथा रत्नकोष नाग पांचमो.
राये सींचे धरा, ऊघराला थयां आचरण हो ॥ ० ॥ ११ ॥ क्रोध तदा कोप्यो घणुं रे, प्रत्याख्याना वरण ॥ श्रारति सैन्य उदेरीने, तिरो सम कितनुं क हरण हो ॥ सुं० ॥ १२ ॥ आयु पूरी ते ऊपनी रे, अपरिग्रहीता व्यं तरीहीन ॥ एकेडिया दिकमां वली, प्रति दुःख दीगं थई दीन हो ॥ सु० ॥ १३ ॥ किंहां बेहेरी किहां बोबडी रे, किहां थयो जिव्हा रोग ॥ ग्रड समी ढालें सुणो, उदय वदे खास्तिक लोग हो ॥ सु०॥ १४ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ तालि लेइ मोहराय तव, महा मूढता प्रिय साथ ॥ हसी कहे सुग हे प्रिये, विस्मयकारी वात ॥ १ ॥ सूधी निवड जे श्राविका, निश्वल जे हना नीम ॥ विकयायें जुन तेहनी, शीशी नांजी सीम ॥ २ ॥ ए गरीब डीनुं कहो शुं गजुं, सा कहे सांनलो स्वाम ॥ ग्रचंनो श्यो ए वातनो, जो नर सुरपति तुम नाम ॥ ३ ॥ सर्वगाथा || १२०४ ॥ ॥ ढाल जंगपोतेरमी ॥
॥ सूर्य साहमी पोले ॥ ए देशी ॥ पुरोहित चक्रीने पूज्य हो प्रभु, यम रगणें दोन जे || महारा लाल || जगमां अतुलबल जास ||हो ॥ सदु जीवने येथोन जे ॥ म० ॥ १ ॥ शिव शोधना जे सोपान ॥ हो० ॥ चौद ते मांहे ग्यारमें ॥ म० ॥ पगथीए पहोता जे सूर || हो० ॥ पग मांमवा चाहे बारमे ॥ ० ॥ २ ॥ पुरुष पलकमां तेह || हो० ॥ हुंकार मार्गे तिहांकी ॥ म० ॥ पाडी नमाव्या पाय || हो० ॥ दीन ते जिहां तिहां रुजे दुखी ॥ म० ॥ ३ ॥ ए जीव संसारी अनंत || हो० ॥ आण प्रमाण करी सदु || म० ॥ हाजर बंधा होय ॥ हो० ॥ सुविधें तुम सेंवे बहु ॥ म० ॥ ४ ॥ तव सम कालें त्यांहि ॥ हो० ॥ सामंत मंत्री स कही ॥ ० ॥ अहो देवीने बुद्धि ॥ हो० ॥ वातनी विगतें केहवी नही || ॥ म० ॥ ५ ॥ जुन संसारी ते जीव ॥ हो० ॥ नरजव पामी एकदा ॥ ॥ म० ॥ समकित पाम्यो शुद्ध ॥ हो० ॥ मोहे ते ऋष्ट कस्यो मुदा ॥म० ॥ ६ ॥ देतां कोइकनवें दान || हो० ॥ अनुचरें मोहनी खालथी ॥ म ० ॥ ततखिण जई थंच्यो तेह || हो० ॥ किहां एक चुकाव्यो शीलथी ॥ म० ॥ ॥ ७ ॥ क्रोधें किधो की हां जेर ॥ हो० ॥ तपना देखी तानमां ॥ म० ॥ किहां एक कस्यो जावना जंग || हो० ॥ धरी तेहने पुष्ट ध्यानमां ॥म ॥