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श्रीनुवननानु केवलीनो रास. २३७ ढालें ॥ जिम तिम लोकने नाखे जालें ॥ लोनिन नर जगमां लख वातें ॥ पण जयकारो न लहे दिनरातें ॥ ११ ॥
॥ दोहा ॥ समय लही सागर तदा, श्म तसु दे उपदेश ॥ जूतुं तूं छं जंपता, शंकायें सुविशेष ॥ १ ॥ सर्वगाथा ॥ ११०२ ॥
॥ढाल एकसठमी ॥ ॥ गोकुल गामने गोंदरे रे ॥ ए देशी ॥ जूतुं बोलतो जोखमां रे, मलि मलि गुं करे मांग ॥ माहरा वाहला रे, मृपावाद वदे श्स्यु रे, लोनें प्रे खो ते लांग ॥ मा० ॥ जू० ॥१॥ फेरव्यो तुं बोले फडे रे, नथी लहेतो कांश न्याय ॥ मा ॥ घरनु खरच बहु उंहुं रे, प्रचूर जांमां नराय ॥ मा० ॥ ॥ ५ ॥ वाणोतरी वली आपवी रे, करवा लोगोपनोग ॥ मा० ॥ बेसराणि बदु बाजारमा रे ॥ जोडंवा विवाहादिक योग ॥ मा० ॥ जू० ॥ ॥३॥ साचूं बोलतां सोंखिया रे, लहियें'न लान अपार ॥ मा० ॥ अलि क अ अक्ष्य निधि रे, केतक नामें निरधार ॥ मा० ॥ ज० ॥ ४॥ यतः श्लोकः ॥ वाणिज्ये परमो नीवी,वेश्यानां परमो निधिः ॥ लिंगीनां परमा धारो, मृषावाद नमोस्तुते ॥ १ ॥ जूतूं बोले बीजा बदु रे, तेहनी थासे जे पेर ॥ मा० ॥ गति थाशे माहरी पण तेहवी रे, वणिजने साचने वेर ॥ मा० ॥ जू० ॥ ५ ॥ ते पण कानें कांई तूं धरे रे, जे मुखथी बके ए मूंग ॥ मा० ॥ पर घर सूरा पिमिया रे, अखंफ एहनां पारवंम ॥ मा० ॥ जू॥ ॥ ६ ॥ न घर बारा नकरा सदा रे, सुखें आपे ए शीख ॥ मा० ॥ पण क झुं एहनुं जे करे रे, ते आखर मागे नीख ॥ मा० ॥ जू० ॥ ७ ॥ माधुं मुं माव जो होय रे, तो मुंमना मानियें वयण ॥मा॥ सोहेलुं न रहेQ सं सारमा रे, जोने उघाडिने नयण ॥ मा० ॥ ज० ॥ ७ ॥ उपदेश तेहनो ते सांजली रे, अलिक बोले निशंक ॥ मा० ॥ व्रत नागुं वीशे वीसारे, देश विरति नाती लहि वंक ॥ मा ॥ जू० ॥ ए ॥ देव पूजादिक आचरे रे, अनुक्रमें पूरी ते पाय ॥ मा० ॥ हीन व्यंतर ते नपनो रे, समकित व्रष्ट महिमाय ॥ मा० ॥ जू० ॥ १० ॥ किहां मुंगो किहां बोबडो रे, कंठ तालु जीन दंत ॥ मा० ॥ अधर रोग जुर्गधता रे, एहवा मुख रोग लहंत ॥ मा० ॥ जू० ॥ ११ ॥ किहांयें बोल्युं गमे नहिं रे, उःस्वर सदु रहे दूर ॥ मा० ॥ नर नव पामी एहवा बद्ध रे, पीडा दीठी प्रचूर ॥ मा० ॥०॥ १२॥