________________
कर्पूरप्रकर, अर्थ तथा कथा सदित. ए मां दवामि थयेलो जोश्ने तुने जातिस्मरण झान तत्पन्न थयु.त्रण स्थंमिल कस्यां. त्यां शरीर खजवालवामाटे पग उंचो कस्यो, एवामां कोक शशलो ताहरा पग नीचे धावी उनो रह्यो. पडी तें.त्रणदिवस पर्यंत शशलानी कपा यें करी पग नीचें मूक्यो नही. चोथे दिवसें पग उपाडीने स्थापन करतां ते ह स्ती मरीने तुं मेघकुमार श्रेणिकराजाने त्यां अवतस्यो. या प्रकारनां वीरनगवा ननां वचन सांजली करीने फरी वैराग्य उपन्यो, तेवारें अखंम संयम पालीने विजय विमाने देव थयो. माटे मनुष्य नव सर्वथी उत्तम डे, एम जाणवू ॥७॥
वेलाकूले महति नृनवे प्राक्प्रसन्नवत्त, जी वा मूढश्लथदृढधियः कोणते कर्म वस्तु ॥ क्रू रा गुप्तिः कुगतियुग़लीवर्णकः स्वरंतो, येनां
ते स्याधिवपुरमुरुस्फूर्ति तेषां क्रमेण ॥ ॥ अर्थः-(मूढ के०) मूढ,तथा (श्लथ के०) शिथिल तथा (दृढधियः के०) दृढबुद्धि वाला एवा त्रण प्रकारना (जीवाः के०) जीवो, (तत् के०) ते (कर्मव स्तु के०) कर्मरूप वस्तुने (कीणते के०) उपार्जन करे ले. क्यां उपार्जन करे जे? तो के (नृनवे के०) मनुष्यजन्मनेविषे. ते केवो नृनव जे ? तो के (वेलाकू ले के०) समुश् समान (महति के० ) विस्तीर्ण एवो. केनीपेठे ? कर्मवस्तु ने ग्रहण करे ,तो के (प्राकप्रसन्नेञ्चत् के०) पूर्वे थयेला प्रसन्नचंराजर्षि नी पेठे (येन के०) जे कर्मवस्तुयें करी (तेषां के०) ते पूर्वोक्त त्रण प्रकार ना जीवोने (क्रमेण के० ) अनुक्रमें त्रण गति प्राप्त थाय ने. तेमां (कुग तियुगलीवर्णकः के०) नरकतिर्यकरूप जे गतिनुं युगल तेनो ने वर्णक जेमां एवी (कूरागुप्तिः के०) फुःखरूप में गुप्ति एटले गृह जेनुं एवी गति,मूढबुद्धि वाला प्राणीने थाय . तथा शिथिल बुद्धिवासाने (अंते के०) अंतमां (वर्ड रतः के०) स्वर्ग पण प्राप्य थाय अने दृढबुद्धिवालाने (उरुस्फूर्ति के०) अत्यंत प्रकाश जेनो एवं (शिवपुरं स्यात् के०) मोक्षपद प्राप्त थाय ॥6॥ __ बाहिं प्रसन्नचंराजर्षिनी कथा कहे . पोतनपुर नगरना स्वामी प्र सन्नचंराजायें पोताना राज्ये बमासना पोताना पुत्रने थापी दीक्षा ग्रह ए करी. एकदा श्रीवीरस्वामी राजगृही नगरीने विषे आवी समोसस्था. ते मनाथी केटलेक दूर उनो रहीने सूर्य सामी दृष्टि करी तथा उंचा हाथ क