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श्रीनुवननानु केवलीनो रास. १७१ बोले ने महा राय ॥४॥ किन्नर नर सुरनी कोडि, जेहने नमे कर जोडी ॥ नुवननानु जस नाम, केवली करुणा रसधाम ॥ ५ ॥ अवनिपति सु गिने एम, पूरण ते पाम्यो प्रेम ॥ ऐन अमृतने रसें अरच्युं, जाणे चंदन सुं तन चरच्युं ॥ ६ ॥ जाणे त्रिभुवन लीला लाधी, सुख सागरनी लहेर वाधी ॥ दीधुं तेहने प्रीतिदान, जेहनु नवि थाय मान ॥ ७ ॥ एक आं ख उलालामांहि, सामग्री सजी उडांहि ॥ श्वेत नइ गजें समारी, ऊ पर करे असवारी ॥ ॥ श्वेत बत्र शिर ऊपर बाजे, जे नानु प्रतापने नाजे ॥ शशिकिरण समूह समाने, ढले चामर उऊल वाने ॥ ए ॥ दय गय रथ पायक पूरें, वीट्यो चोफेर सनूरे ॥ परिकर श्रेणे परवरित, अव निपति उलट नरिच ॥ १० ॥ पुरव दिशिने नद्याने, पहोतो पावन थावा ने ॥ उरथी देखि मुनि राय, तजी असवारी तिणे गय ॥ ११॥ शस्त्र चामर मुकुट ने बत्र,तजी तंबोलादिक तत्र.॥ कर चरण वदन जल शुदि, परवाली परम शुरू बुदि ॥ १२ ॥ तजी पाऊका विनयसुं त्रिविधे, करक मल जोडीने सुविधे ॥ परपदमा पेसी प्रीतें, मुनिनें वंदे मन हीतें ॥१३॥ देश प्रदक्षिणा त्रण तेह, शिर नुमीसुं फरसी स्नेह ॥ जावें वंदी लगवान, सपरिवारें राजान ॥ १४ ॥ उदयरत्न कहे ए ढाल, बीजी में बोली रसा ल ॥ नेहें जे मुनिने नमशे, ते नवनी जावत गमशे ॥१५॥सर्वगाथा ४२॥
॥दोहा॥ ॥कर जोडी स्तवना करे, निरवद्य नूमि निहालि ॥ बेगे वे कर जोडी ने, वारू सना विचालि ॥ १ ॥ दीधी मुनिवर देशना, शांजलि ने नृप सो य ॥ घरज करी वलती इसी, उत्तम अवसर जोय ॥ ३ ॥ रांक रीजे जि म रत्ननी, वृष्टि देखिने वेग ॥ तुम आगमने तेम हूं, निज मन पाम्यो ने ग ॥ ३ ॥ नव सागर जूमो घणो, कंमो जेह अथाग ॥ दरश आज तुम देखतां, तेहनो पाम्यो ताग ॥ ४ ॥ सर्वगाथा ॥ ४६ ॥
॥ढाल त्रीजी॥ ॥ थां पर वारि मारा साहेबा ॥ ए देशी॥ नगवन मुफ बाल नावमां, मुनिवर एक मलिन ॥ बोध प्रापीने बह परें, पुरुत नीर दलिन ॥१॥ पण समकित नवि सदह्यो, वाल बुदिपणाथी॥ उपदेश ते अगारनो, जे ह मुक्तिनो साथी ॥ २ ॥ संस्कारमात्र ते साधुनी, देशना दिल धारी ॥