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२६० जैनकथा रत्नकोष नाग पांचमो.
नूपेंशत्वादिसंपन्मतिकुसुमंततिर्नोगचिंताफलर्दि, र्लोनो तृत्त्या श्रवंत्या व्रजतु कलितसर्वप्तरप्यार्तिदेतुः॥१२॥ इति लोनप्रक्रमः॥ इति कर्पूरप्रकरग्रंथः समाप्तोयम् ॥ अर्थः-(लोनः के०) लोनरूप (कलितरुः के) नयंकर वृद, ते (र त्या के०) संतोषरूप (श्रवंत्या के०) नदीयें करी (व्रजतु के०) तणाजा एटले जेम नदीना जोरथी वृद तपाइजाय तेमालोजरूप वृत पण सं तोष नदीथी तणाइ जा. हवे ते लोनरूप वृद्ध केवो ने ! तो के (कपिलस मधियां के०) कपिल ब्राह्मण समान बुद्धिवाला (जनानां के०) जनोनी (चि तावन्यां के०) चित्तरूप अवनीने विषे (वित्तलेशाप्तमूलः के०) प्राप्त वित्तना लेशरूप मूल जेनां एवो दे तथा (प्रत्याशावारिसिक्तः के०) आशा अने प्र त्याशा ते रूप जे जल तेणें करी सिंचायेलो एवो जे. तथा (धनिविविधध. नप्रार्थनाजोगवल्गुः के०) अनेक धनवाननी विविध प्रकारनी प्रार्थनानो जे विस्तार, तेणें करी मनोहर अने वली (नूपेंश्त्वादिसंपन्मतिकुसुमत तिः के०) मोहोटा मोहोटा राजादिकनी जे संपत्ति तेने विषे मतिरूप ले कुसुमनो विस्तार जेमां एवो ने. वली (नोगचिंताफलाईः के०) नोगनी जे चिंता ते रूप जे फल तेनी संपत्ति जेने विषे एवो . माटे कवि कहे जे संतोष नदीये करी लोनद तपाइ जान. एवी इजा सर्वे जन राखो ।
आंहिं कपिलब्राह्मणनी कथा कहे जे. चंपापुरीने विपे कपिलदेव नामा ब्राह्मण रहेतो हतो,ते नाग्ययोगथी दासीमा बासक्त थयो,तेथी थोडे थोडे ते निईव्य थ गयो. एक दिवस ते दासीय तेने अईरात्रिय राजा पासें बे मासा सुवर्ण लेवा माटे मोकटयो, त्यां तेने राजाना माणसोयें पकडी बांधी ने राजानी पासें थाण्यो. राजायें तेना आकारथी जाण्यु जे आ चोर नथी, राजायें पूयु के अरे तुं कोण हो ? त्यारे ते ब्राह्मण बोल्यो के एक दासी मारी राखेली स्त्री ने तेणे मने मोकटयो ने था खरी वात सांनलवाथीरा जा संतुष्ट थइ कहेवा लाग्यो के जे तारे शबा होय ते माग्य. त्यारे ब्राह्मणे कर्दा के तमारा अशोक वनमा जइएकांतमां थोडी वार विचार करीने प बीमागीश ? राजायें तेमकबूल कयूं पड़ी ते त्यां वनमां जर विचारवा लाग्य के हुँ ते झुं मागु सो मामु ? के सहस्त्र मागुं? के लद मारे ? के करोड