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जैनकथा रत्नकोष नाग पांचमो. श्रावेला वणिकना पुत्रोयें अनयकुमारनुं वर्णन ते आईकुमार पासें कयुं. पू वनवना स्नेहें करी आईकुमारने ते अनयकुमारनुं वृत्तांत सांनसतांज स्ने ह वृद्धिंगत थयो. पड़ी ते वणिक.पुत्रोनी साथें अजयकुमारने नेट मो कली अने अनयकुमारे वीरनगवानना कहेवाथकी पूर्वनव व्यतिकर
आईकुमारनो जाण्यो. तेवारें अजयकुमारे पट्टकुलें करी आबादित करी श्रीजिन प्रतिमानुं प्रेषण कराव्यु. ते प्रतिमाना दर्शने करीनेज पूर्वनवर्नु स्म रण आव्युं अने वैराग उत्पन्न थयो. तेवारें महोटा कष्टें करीने अनार्यदेश थकी आर्यदेशमां भावीने दीक्षा ग्रहण करी. वली नोग्यकर्म बाकी रहेला होवाथी गृहस्थाश्रम स्वीकार कस्यो. तिहां चोवीश वर्ष रही पड़ी दीक्षा ग्रहण करी मोद पाम्या ॥ गाहा ॥ अप्पा विमोच ना,वबंधणा दव बंध णा उय ॥ ल ज परतिबिसु, सो अहरिसी सिवं पत्तो ॥ ३ ॥
हवे बीजं आर्यदेशोत्पन्न हार कहे . आर्य देशमवाप्य धर्मरहितोऽप्यन्यस्य धर्मक्रियां, ध मस्थानमहांश्च वीक्ष्य सुगुरोः श्रुत्वा च धर्म क्वचित् ॥ बोधं याति कुलोचनास्तिकमतो नूपः प्रदेशीयथा, स त्यं चंदनसंगिनः दितिरुहो नान्येऽपि किं चंदनाः॥४॥ अर्थः-(धर्मरहितोपि के०) धर्मरहित एवो पण जीव, (आर्यदेशं के०) उत्तम एवा आर्यदेशने (अवाप्य के०) पामीने (अन्यस्य के०) बीजा श्र चालु धर्मिजनोनी (धर्मकियां के०) धर्मक्रियाने तथा ते जनोना (धर्मस्थान के०) धर्मस्थानोने विषे (महान् के०) महोटानत्सवोने (वीक्ष्य के०) जो
ने (च के) वली (सुगुरोः के) सुगुरुना मुखथकी (कचित् के०) कोश्क वखत (धर्म के०) धर्मने (श्रुत्वा के) सांजलीने (बोधं के०) बोधने (याति के) पामे जे. (यथा के०) जेम (प्रदेशीनूपः के०) परदेशी राजा बोधने पा म्यो, ते केवो ? तोके (कुलोबनास्तिकमतः के०) कुलागत नास्तिकमत जेनुं एवो . ( सत्यं के०) ते साचं . केम के (चंदनसंगिनः के०) चंद न वृदना संगवाला एवा (अन्येपि के०) बीजा पण (दितिरुहः के०) वृदो (किं न चंदनाः के०) झुं चंदन नथी थातां? अर्थात् थायज .ए टले सारा जनना संगथकी मोक्ष प्राप्ति थाय बे ॥४॥