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कर्पूरप्रकर, अर्थ तथा कथा सहित. १२१ मरीने देवपणुं पामीने पड़ी पांच पांमवोनी पदी नामें स्त्री थ६ ॥१०॥
निःसत्वं निर्दयत्वं विविधविनटनाशौचनाशात्महानि, रस्वास्थ्यं वैरटर्व्यिसनफलमिहामुत्र उर्गत्यवाप्तिः॥ चौ लुक्यमापवत्तक्ष्यसनविरमणे किं न ददा यतध्वं, जा नंतोमांधकूपे पतत चलत मा दृगविपादेःपया दे ॥१०॥ अर्थः-( निःसत्त्वं के०) निःसत्त्वपणुं तथा ( निर्दयत्वं के०) निर्दय पणुं अने (अस्वास्थ्यं के ) अस्वस्थपणुं ( वैरवृदिः के०) वैरनी वृद्धि, (शौचनाशात्महानिः के०) पवित्रतानो नाश, तथा आत्मानी हानि, ( विविधविनटना के ) विविध प्रकारनी जे जीवोने विडंबना ते सर्व ( व्यसनफलं के० ) कुव्यसननो फल ते (इह के.) आ लोकमां प्राप्त थाय ने अने (अमुत्र के० ) परलोकमां तो ए कुव्यसन थकी (5 गैत्यवाप्तिः के० ) उर्गतिनी प्राप्ति थाय जे. केनी पेलें ? तो के ( चौलुक्य क्ष्यापवत् के०) चौलुक्य राजानी पेठे, (तत् के०) ते कारण माटे (व्यसन विरमणे के० ) व्यसननाविरमणने विषे ( ददाः के०) हे माह्या पुरुषो ! (किं के०) झुं (नयतध्वंके०) यत्न नथी करता? अर्थात् ते व्यसन त्यागनो हे माह्या जनो! तमो यत्न करो. (जानंतः के ) जाणता बता (अंध कूपे के०) बांधला कूवाने विषे (मापतत के०) म पडो, अने (दृग विषाहेः के० ) दृष्टिमांज जेने विष रह्यु एवा सर्पना (पथा के०) मार्गे (हे के०) हे ददो ! तमें (माचलत के०) म चालो अर्थात् दृष्टिविषयुक्त सर्प ज्यां रहे जे ते मार्गमां तमो चालो नहिं ॥ ११ ॥
यांहिं कुमारपाल राजानी कथा कहे . अणहिनपुर पाटणने विपे चौलुक्यवंशनो कुमारपाल राजा राज्य करतो हतो, ते राजा, कलिकालमां सर्वज्ञ बिरुदधारक,त्रण करोड ग्रंथना कर्ता एवा प्रनुश्री हेमाचार्यना वच नोयें करी बोध पामी परम जैनधर्मी थयो, तेणे पोताना अढार देशमाथी सात उर्व्यसन निवृत्त करयां अने पोताना देशोमा रहेली कंटकेश्वरी देवी नी बागल पाडाउनो नाश थतो हतो, ते सर्व निवृत्त कराव्यो. तथा तेना राज्यमां कोई जू पण मारे नही एवो हिंसानो निषेध कस्यो. जो कोई जू ने मारे तेनो दंम करीने ते ऽव्यथी जु विगेरे जंतुना नाना महोटां रहाण