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लोकों का स्वरूप बतलाया है । दृष्टि एवं तर्क के अगोचर होते हुए भी भगवान की वाणी पर श्रद्धा रखना इसी का नाम सम्यक्त्व है।
आज चन्द्रलोक की यात्रा के विषय में थोड़ा विचार करके देखा जाये तो हमारे बहुत से जैन बन्धुओं की क्या स्थिति हो रही है । अमरीकी चन्द्रमा पर उतर गये एवं वहाँ की मिट्टी ले आये हैं । यह मव अमेरिका के लोगों ने टेलीविजन पर प्रत्यक्ष देखा है। आगे और भी उनके विशेष प्रयास जारी हैं। कई प्रकार की वैज्ञानिक कल्पनाग छापी जा रही हैं। यह भी मूचित किया गया कि वहां ग्राम जनता के लोग भी (लाग्ख रुपये का) टिकट लेकर जा मकेग।
प्रिय बन्धनों ! न तो मभी लोगों ने टेलीविजन में उन्हें इमी चन्द्र पर उतरते हुए देखा है और न वहां की मिट्टी ही मब लोगों को मिली है और न ही मभी लाखों का टिकट लेकर वहाँ जा सकते हैं। मात्र पागम और पूर्वाचार्यों के प्रति नरह-तरह की अश्रद्धा एवं प्रागंका उत्पन्न कर-करके अत्यन्त दुर्लभता से प्राप्त हुए सम्यक्त्व रूपी रत्न को भी व्यर्थ में गवां रहे हैं।
इस प्रकार 'इतो भ्रष्टस्ततो भ्रष्ट:' वाली उक्ति को चरितार्थ कर रहे हैं। अतः इतने भात्र में ही अपनी श्रद्धा को न विगाई। अभी तो आगे इम मन्वन्ध में और भी खोजें होती रहेंगी।
अभी तो यह सोचने की बात है कि जब यहाँ (पृथ्वी) से ३१,६०,००० मील की ऊंचाई पर सबसे पहले ताराओं के विमान हैं, ३२,००,००० मील ऊपर सूर्य के विमान हैं तथा इन