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वीर ज्ञानोदय ग्रंथमाला एवं वर्फ जैसे वर्ण वाले, कोई सुवर्ण सदृश वर्ण वाले व कोई मूगा जैसे वर्ण वाले हैं।
इन भवनों में उपपाद मंदिर, स्नानगृह, भूषण गृह, मथुनशाला, कोड़ाशाला, मंत्रशाला एवं प्रास्थान शालायें (सभाभवन) स्थित हैं। वे सब प्रासाद उत्तन परकोटों से सहित, विचित्र गोपुरों से संयुक्त, मणिमय तोरणों से रमणीय, विविध चित्रमयी दीवालों से युक्त, विचित्र-विचित्र उपवन वापिकानों से शोभायमान, सुवर्णमय विशाल खंभों से सहित और शयनासन प्रादि से परिपूर्ण हैं। वे दिव्य प्रासाद धूप की गंध से व्याप्त होते हुये अनुपम एवं शुद्ध रूप, रस, गंध और स्पर्श से विविध प्रकार के सुखों को देते हैं।
तथा इन भवनों में कूटों से विभूषित और प्रकाशमान रत्नकिरण-पंक्ति से संयुक्त ७-८ आदि भूमियां (मंजिल) शोभाय. मान होती है। ___ इन चन्द्र भवनों में सिंहासन पर चन्द्र देव रहते हैं। एक चन्द्र देव की ४ अग्रमहिषी (प्रधान देवियां) होती हैं । चन्द्राभा, सुसीमा, प्रभंकरा, अचिमालिनी-इन प्रत्येक देवी के ४-४ हजार परिवार देवियां हैं । अग्रदेवियां विक्रिया से ४-४ हजार प्रमाण रूप बना सकती हैं। एक-एक चन्द्र के परिवार देव-प्रतीन्द्र (सूर्य), सामानिक, तनुरक्ष, तीनों परिपद, सात अनीक, प्रकोर्णक, आभियोग्य और किल्विषक, इस प्रकार ८ भेद हैं। इनमें प्रतीन्द्र ? तथा सामानिक मादि संख्यात प्रमाण देव होते हैं। ये देवगण भगवान के कल्याणकों में माया करते हैं ।