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वीर ज्ञानोदय ग्रंथमाला उसके मूल में उष्णता न होकर सूर्य की किरणों में ही उष्णता होती है । इसलिये सूर्य की किरणें उष्ण हैं।
उसी प्रकार चन्द्रमा के बिंब में रहने वाले पृथ्वोकायिक जोवों के उद्योत नाम कर्म का उदय है जिसके निमित्त से मूल में तथा किरणों में सर्वत्र ही शीतलता पाई जाती है । इसी प्रकार ग्रह, नक्षत्र, तारा आदि सभी के बिंब-विमानों के पृथ्वीकायिक जीवों के भी उद्योत नाम कर्म का उदय पाया जाता है।
सूर्य चन्द्र के विमानों में स्थित
जिनमंदिर का वर्णन सभी ज्योतिर्देवों के विमानों में बीचोंबीच में एक-एक जिन मंदिर है और चारों ओर ज्योतिर्वासी देवों के निवास स्थान बने हैं।
विशेष'-प्रत्येक विमान की तटवेदी चार गोपुरों से युक्त है। उसके बीच में उत्तम वेदी सहित राजांगण है। राजांगण के ठीक बीच में रत्नमय दिव्य कूट है । उस कूट पर वेदी एवं चार तोरण द्वारों से युक्त जिन चैत्यालय (मंदिर) हैं। वे जिन मदिर मोती व सुवर्ण की मालाओं से रमणीय और उत्तम वज्रमय
१. तिलोयपष्णत्ति के माधार से ।