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वीर ज्ञानोदय ग्रंथमाला इस विषय पर विशेष ऊहापोह न करके इस पुस्तक में केवल जन सिद्धांत के अनुसार ज्योतिर्लोक का कुछ थोड़ासा वर्णन किया जा रहा है।
माज प्रायः बहुत से जैन बन्धुओं को भी यह मालूम नहीं है कि जैन सिद्धांत में सूर्य, चन्द्रमा एवं नक्षत्रों आदि के विमानों का का प्रमाण है एवं वे यहाँ से कितनी ऊंचाई पर हैं इत्यादि ? क्योंकि त्रिलोकसार, तिलोयपत्ति, लोकविभाग, श्लोकवातिक प्रादि ग्रन्थों के स्वाध्याय का प्रायः आजकल प्रभाव सा ही देखा जाता है।
इसीलिये कुछ जैन बन्धु भी भौतिक चकाचौंध में पड़कर वज्ञानिकों के वाक्यों को ही वास्तविक मान लेते हैं अथवा कोई. कोई बन्धु संशय के झूले में ही झूलने लगते हैं।
वास्तव में वैज्ञानिक लोग तो हमेशा ही किसी भी विषय के अन्वेषण एवं परीक्षण में ही लगे रहते हैं। किसी भी विषय में अंतिम निर्णय देने में वे स्वयं ही असमर्थ हैं। ऐसा वे स्वयं ही लिखा करते हैं।
देखिये-वैज्ञानिकों का पृथ्वी के बारे में कथन
"हमारा सौर मंडल एवं पृथ्वी की उत्पत्ति एक रहस्यमय