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चन्द्र लोक यात्रा सफल समझ लें किन्तु अभी वे असली चन्द्रमा पर नहीं पहुंच पाये हैं। आकाश में अनेकों ग्रह नक्षत्र ही नहीं इसी प्रकार के अन्य भ्रमणशील पुद्गल स्कंध भी शास्त्रों में बतलाये गये हैं। हो सकता है आधुनिक वैज्ञानिक भी ऐसे ही किसी पुद्गल स्कंध पर पहुंच गये हों। जैनवाङमय के अनुसार उनका चन्द्रमा तक पहुंचना संभव नहीं है।
पुस्तक निर्माता ने इसी बात को दिखाने के लिये इस 'ज्योतिलॊक' नाम की पुस्तक का सृजन किया है। सौर मण्डल में कितने ग्रह, नक्षत्र, मूर्य, चन्द्र और तारे हैं उनकी संख्या मय ऊंचाई व विस्तार के आधुनिक माप के माध्यम से दी है । पाठक उसको जान कर अपना भ्रम मिटा सकते हैं। लेखक स्वयं प्रत्यक्ष दृष्टा नहीं है किन्तु पागम चक्ष में वह जितना देख सका है उतना देखा है, इसी के आधार पर अनेकों ग्रन्थों का मंथन कर सारभूत तत्त्व निकालने का प्रयत्न भी कर सका है। हमें लेखक के श्रम की सराहना करनी चाहिये।
जिन भगवान सर्वज्ञ होते हैं अन्यथावादी नहीं होते, प्रतः उनके द्वारा कथित तत्व भी अन्यथा नहीं हो सकते और यह बात सत्य भी है कि जो जो वीतरागी सर्वज्ञ और हितोपदेशी होते हैं वे ऐसे ही होते हैं। अस्तु हमें लेखक की मान्यता का आदर करते हुए उसकी रचना का स्वागत करना चाहिये ।
ग्रन्थकार ने स्वयं अपना कुछ न लिखकर पूर्वाचार्यों का ही सहारा लिया है। त्रिलोकमार, तिलोयपण्णत्ति, लोक विभाग, राजवानिक, श्लोकवातिक आदि ग्रन्थ हो इस पुस्तक की आधार शिला हैं।