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इस पुस्तक को पढ़कर जैन ज्योतिर्लोक को समझे। विशेष समझने के लिए लोक विभाग इत्यादि ग्रन्थों का स्वाध्याय करें एवं अपने सम्यक्त्व को दृढ़ बनावे । यही मेरी शुभ कामना है ।
मोतीचन्द अमोलकचन्दसा जैन सर्राफ
शास्त्री, न्यायतीर्थ नजफगढ़, दिल्ली-४३ मनावद (मध्यप्रदेश) बसन्तपंचमी १९७३ । प्राचार्य श्री धर्मगागरजी संघग्थ)