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वीर ज्ञानोदय ग्रंथमाला
१४४ सूर्य एवं १४४ चन्द्रमा हैं । इस प्रथम वलय की परिधि में १४४ का भाग देने से सूर्य से सूर्य का अन्तर प्राप्त होता है। यथा-१४५४६४७७: १४४=१०१०१७३३४ योजन है । इसमें से सूर्य बिंब और चन्द्र बिंब के प्रमाण को कम कर देने पर उनका बिंब रहित अन्तर इस प्रकार प्राप्त होता X १४४=
१३, १०१०१७६३-६६१=१०१०१६३६४१ योजन एक सूर्य बिंब से दूसरे सूर्य का अन्तर है।
इस प्रकार पुष्करार्ध में ८ वलय हैं। प्रथम वलय से १ लाख योजन जाकर दूसरा वलय है। इस दूसरे वलय में प्रथम वलय के १४४ से ४ सूर्य अधिक हैं। इसी प्रकार आगे के ६ वलयों में ४-४ सूर्य एवं ४-४ चन्द्र अधिक २ होते गये हैं। जिस प्रकार प्रथम वलयसे १ लाख योजन दूरी पर द्वितीय वलय है। उसी प्रकार १-१ लाख योजन दूरी पर आगे-आगे के वलय हैं। इस प्रकार क्रम से सूर्य, चन्द्रों की संख्या भी बढ़ती गई है। जिस प्रकार प्रथम वलय मानुषोत्तर पर्वत से ५० हजार योजन पर है उसी प्रकार अन्तिम वलय से पुष्कराध की मन्तिम वेदी ५० हजार योजन पर है बाकी मध्य के सभी वलय १-१ लाख योजन के अन्तर से हैं।
प्रथम वलय में १४४, दूसरे में १४८, तीसरे में १५२, इस प्रकार ४-४ बढ़ते हुये अन्तिम वलय में १७२ सूर्य एवं १७२ चंद्रमा हैं। इस प्रकार पुष्करा के प्राठों वलयों के कुल मिलाकर १२६४ सूर्य एवं १२६४ चंद्रमा हैं । ये गमन नहीं करते हैं.