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वीर ज्ञानोदय ग्रंथमाला कालोदधि समुद्र को छूते हैं एवं दूसरी ओर मानुषोत्तर पर्वत का स्पर्ग करते हैं। यहां पर भी पूर्व एवं पश्चिम में १-१ मेरू होने से २ मेरू हैं तथा भरत क्षेत्रादि क्षेत्र एवं हिमवन् पर्वत आदि पर्वतों की भी संख्या दूनी-दूनी है। ___ मध्य में मानुषोत्तर पर्वत के निमित्त से इस द्वीप के दो भाग हो जाने से ही इस आधे भाग को पुष्कराध कहते हैं।
इस पुष्करार्ध द्वीप में ७२ सूर्य एवं ७२ चन्द्रमा हैं। इनके ५१०६६ योजन प्रमाण वाले ३६ गमन क्षेत्र (वलय) हैं । प्रत्येक में २-२ सूर्य एवं २-२ चन्द्र हैं। एक-एक वलय में १८४-१८४ सूर्य की गलियाँ तथा १५-१५ चन्द्र की गलियां हैं । १८ वलयों के सूर्य चन्द्र आदि ३ मेरूवों ( १ जंबूद्वीप संबंधि एवं २ धातको खण्ड मंबंधि) को ही प्रदक्षिणा करते हैं। शेष १८ वलय के सूर्य, चन्द्रादि २ पुष्कराध के मेरू सहित पांचों ही मेरूवों की सतत प्रदक्षिणा करते रहते हैं।
विशेष-जदूद्वीप के बीचोंबीच में १ सुमेरू पर्वत है । धातकी खण्ड में विजय, अचल नाम के दो मेरू हैं और वहां १२ सूर्य १२ चन्द्रमा हैं, उनके ६ वलय हैं । जिनमें ३ वलय, दोनों मेरूवों के इधर और ३ वलय मेरूवों के उधर हैं। इसलिएजंबूद्वीप के २ सूर्य एवं २ चन्द्र, लवण समुद्र के ४ सूर्य, ४ चन्द्र, तथा धातकी खण्ड के मेरूवों के इधर के ३ वलय के ६ सूर्य व ६चन्द्र सपरिवार जंबूद्वीपस्थ १ सुमेरू पर्वत की ही प्रदक्षिणा देते हैं। आगे पुष्करार्ध में मंदर और विद्युन्माली नाम के दो मेरू हैं । कालोदधि समुद्र में ४२ सूर्य ४२ चन्द्रमा हैं उनके २१ गमन