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वीर ज्ञानोदय ग्रंथमाला
ये मनुष्य सुभोग भूमिवत् युगल ही जन्म लेते हैं और युगल ही मरते हैं। इनको शरीर संबंधि कोई कष्ट नहीं होता है । कोई - २ वहां की मधुर मिट्टी का भक्षण करते हैं तथा अन्य मनुष्य वहां के वृक्षों के फल फूल आदि का भक्षण करते हैं । उनका कुरूप होना कुपात्र दान का फल है ।
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लवण समुद्र के ज्योतिष्क देवों का गमन क्षेत्र
लवण समुद्र में ४ सूर्य एवं ४ चन्द्रमा हैं । जंबूद्वीप के समान ही ५१०६ योजन प्रमाण वाले वहां पर दो गमन क्षेत्र हैं । दो-दो सूर्य एक-एक गमन क्षेत्र में भ्रमण करते हैं ।
यहां के समान ही वहां पर ५१०६६ योजन में १८४ गलियां हैं । उन गलियों में क्रम से भ्रमण करते हुये सतत ही मेरू की प्रदक्षिणा के क्रम से हो भ्रमण करते हैं ।
जंबूद्वीप की वेदी से लवण समुद्र में ४६६६६६ योजन ( १६,६६, ६८, ४२६६६ मील) जाने पर प्रथम गमन क्षेत्र की पहली परिधि प्रातो है ।
इस पहली गली से ६६६६६१ योजन (३६६६६६८५२३६ मील) जाने पर दूसरे गमन क्षेत्र की पहली गली आती है । यही एक सूर्य से दूसरे सूर्य के बीच का अन्तराल है लवण समुद्र के बाह्य तट से ४६६६६ योजन इधर ( भीतर ) ही दूसरे
गमन क्षेत्र की प्रथम गली प्राती है । प्रर्थात्