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वीर ज्ञानोदय ग्रंथमाला
सातवीं गली में - रोहिणी तथा चित्रा का गमन होता है ।
आठवीं गली में - विशाखा,
दसवीं गली में-- अनुराधा, ग्यारहवीं गली में -- ज्येष्ठा,
एवं पंद्रहवीं गली में -- हस्त, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, मृगशीर्पा, आर्द्रा, पुप्य तथा आश्लेषा नामक शेप ८ नक्षत्र संचार करते हैं । ये नक्षत्र क्रमशः अपनी-अपनी गली में ही भ्रमण करते हैं ।
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सूर्य-चन्द्र के समान अन्य अन्य गलियों में भ्रमण नहीं करते हैं ।
नक्षत्रों की १ मुहूर्त में गति का प्रमाण
ये नक्षत्र अपनी १ गली को ५६३६ मुहूर्त में पूरी करते हैं । अतः प्रथम परिधि ३१५०८६ में ५६३६७ का भाग देने से १ मुहूर्त के गमन क्षेत्र का प्रमाण आ जाता है । यथा - ३१५०८६ - ५६३६ मुहूर्त = ५२६५१ योजन पर्यन्त पहली गली
में रहने वाले प्रत्येक नक्षत्र १ मुहूर्त में गमन करते हैं ।
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आगे-आगे की गलियों की परिधि में उपर्युक्त इस पूर्ण. परिधि के गमन क्षेत्र ( ५६६ मुहूर्त) का भाग देने से मुहूर्त प्रमाण गमन क्षेत्र का प्रमाण ग्रा जाता है ।
विशेष – चन्द्र को १ परिधि को पूर्ण करने में ६२