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वीर ज्ञानोदय ग्रंथमाला
इस प्रकार राहु प्रतिदिन एक-एक मार्ग में चन्द्रबिंव की १५ दिन तक एक-एक कलात्रों को ढकता रहता है । इस प्रकार राहुविव के द्वारा चन्द्र को १-१ कला का प्रावरण करने पर जिस मार्ग में चन्द्र की ? हो कला दोखती है वह अमावस्या का दिन होता है।
फिर वह गहु प्रतिपदा के दिन से प्रत्येक गली में १-१ कला को छोड़ते हुये पूर्णिमा को पन्द्रहों कलाओं को छोड़ देता है तब चन्द्र विव पूर्ण दीखने लगता है। उमे ही पूर्णिमा कहते हैं। इस प्रकार कृष्णपक्ष एवं शुक्ल पक्ष का विभाग हो जाता है।
चन्द्रग्रहण-सूर्यग्रहण का क्रम
इस प्रकार ६ मास में पूणिमा के दिन चन्द्र विमान पूर्ण पाच्छादित हो जाता है उसे चन्द्रग्रहण कहते हैं तथैव छह मास में सूर्य के विमान को अमावस्या के दिन कंतु का विमान ढक देता है उसे सूर्य ग्रहण कहते हैं ।
विशेष-ग्रहण के समय दोक्षा, विवाह आदि शुभ कार्य वजित माने हैं तथा सिद्धांत ग्रन्थों के स्वाध्याय का भी निषेध किया है।
सूर्य चन्द्रादिकों का तीव्र-मन्द गमन
सबसे मन्द गमन चन्द्रमा का है। उससे शीघ्र गमन सूर्य का