SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अब चन्द्र ही नहीं दिखाई दे सकता तो राकेट-मानव को चन्द्र घरातल पर उतरते देखा यह कथन सर्वथा असत्य एवं भ्रामक है। - समाचार पत्रों में एक बात और यह पढ़ने में आई कि प्रयोग से जाना गया है कि चन्द्रमा की चट्टाने दो अरब से साढ़े चार अरब वर्ष पुरानी हैं यह मत अमेरिका के न्यूयार्क विश्वविद्यालय के चार बड़े वैज्ञानिकों का है । परन्तु बारीकी से अन्वेषण करने पर हजारों या दो चार लाख वर्ष पुरानी हो सकती हैं। लेकिन यह कहना कि वे ४।। अरव वर्ष पुरानी हैं इस प्रकार के निर्णय में क्या प्रमाण है ? इस नम्ह अनुमान मे ही वैज्ञानिक लोग बहुत सी वानों को वास्तविक रूप में प्रगट कर देते हैं। एक वार नवभारत टाइम्म मे ममाचार पढ़ने में आये कि एक पुराना हाथी दांत मिला है जो कि ५० लाख वर्ष पुराना है । जबकि यह हजारों वर्ष पुगना भी हो सकता है ऐसे कितने ही वैज्ञानिकों के अनुमान असत्य की थंणी में गभिन हो जाते हैं। प्राचीन पाश्चात्य विद्वान पृथ्वी को केवल ८४ हजार वर्ग मील या उसमे कुछ अधिक मानते थे लेकिन उसकी खोज होने पर अब वह प्रमाण असत्य हो गया। पहले अमेरिका आदि का सद्भाव नहीं था। पृथ्वी को उतनी ही मानते थे। अब धीरेधीरे नई खोज से नये देश मिले जिसमे पृथ्वी बढ़ गई। पाइचात्य भू-वत्ता पृथ्वी को नारंगी के आकार में गोल एवं घूमती हुई मानते थे, परन्तु इसके विपरीत अमेरिका के एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक विद्वान ने पूर्व मत का खण्डन करते हुए लिखा था कि पृथ्वी नारंगी के समान गोल नहीं है और सूर्य चन्द्र स्थिर नहीं हैं वे चलते फिरते रहते हैं। इस प्रकार का एक लेख लगभग २५-३० वर्ष पहले समाचार पत्रों में प्रकाशित हो चुका है। ..
SR No.010244
Book TitleJain Jyotirloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Jain Saraf, Ravindra Jain
PublisherJain Trilok Shodh Sansthan Delhi
Publication Year1973
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy