________________
Res
जैन जगती
* अतीत खण्ड .
व्याकरण
छोटे बड़े चालीस लगभग व्याकरण के ग्रंथ हैं; साहित्य वर्णाकर्ण गिरिके ये सभी हरि-पंथ हैं सम्पन्नता सब भाँति ये साहित्य की बतला रहे; साहित्य- सर के पार हमको यान ये पहुँचा रहे || १८६ ॥ यह शाकटायन १९७ व्याकरण सबसे अधिक प्राचीन है; श्री हेमचन्द्राचार्यकृत ९८ व्याकरण उपमाहीन है । व्युत्पत्ति से हर शब्द की उत्पत्ति हमने है करो; संस्कृत १९२ सुना है मातृ भाषा आदि प्राकृत २०० की री ! || १६० ॥ कोष
-
कुछ हमकृत उस कोपर २०१ की जाटिल्यता तो लेखिये; प्रत्येक अक्षर के वहाँ वन अर्थ नाना पेखिये | राजेन्द्र सूरीश्वर रचित अभिधान २०२ नामा कोष-सेहै कौन विश्रुत कोप जग में ? - ढूँढ़ लो संतोष से ॥ १६१ ॥ छंदोऽलंकार -
-
3
काव्यानुशासन नाट्य २०४ दर्पण वृत्ति कैसे ग्रंथ हैं ? साहित्य पुष्पित हो रहा कर प्राप्त ऐसे ग्रंथ हैं । अवयव सभी साहित्य के तुमको यहाँ मिल जायँगे; आवाल जिन-साहित्य को साहित्य-तरु का पायँगे ॥ १६२ ॥
महाकाव्य -
उत्कृष्ट काव्यों से भरा साहित्य भूषित हो रहा; ज्यों पद्म-संकुल रम्य सरवर हो मनोहर लग रहा । है जोड़ के रघुवंशसंभव, मेघदूतेत्यादि के; क्या शब्द परिचय दे यहाँ परिशिष्ट पर्वे २०५ त्यादि के ।। १६३ ॥
३६