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® जैन जगतो. 300ORAHE
* अतीत खण्ड ®
करते नहीं थे कर्म ऐसा की किसी को कष्ट हो; सब एक सर के मीन थे फिर क्यों किसी से रुष्ट हो। आचार में, व्यवहार में, सन्मार्ग में सब एक थे; मृगराज, गौ, मृग, गज, अजा जल घाट पीते एक थे ॥ ३३ ॥ साहित्य उनने जो लिखा वह क्या लिखेगी शारदा; आसीन थी उन पूर्वजों के मुख-कमल पर शारदा । उन ज्ञानगरिमागार के जो गान गायक गा रह; मृतलोक से सुर लोक में वे हैं बुलाये जा रहे ॥४०॥ कृतकाल में कलिकाल का वे स्वप्न खलु थे देखते; सर्वज्ञ थे, सब काल दी, क्यों न ऐसा पेखते । वे प्रलय तक के हाल सब हैं लिख गये, लिखवा गये; कौशल-कला-विज्ञान के भंडार पूरे भर गये ॥४१ ।। हम देखते हैं ठीक वैसा जिस तरह श्रुति कह रहे; हैं आज घटना-चक्र उनके शब्द अनुसर घट रहे । विश्वास उनके कथन में फिर भी हमें होता नहीं ; हा ! क्या करे ? यह काल जब करने हमें देता नहीं ।। ४२ ॥
है कौन ऐसा मनुज वर जो साम्य उनका कर सके ? बल, ज्ञान, तप, व्यवहार में जो होड़ उनकी कर सके। क्या जगमगाती दीप-आती साम्ब रविका कर सकी ? हो क्या गया यदि कीट पर अधिकार स्थिर भी कर सकी ।। ४३ ॥