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जन जगती,
•परिशिष्ट.
सूर्य और चन्द्र भो पृथ्वी पर उतर भाते थे और भगवान् का उपदेश श्रवण करते थे।
२८३-मदन राजर्षिये परमहंस महात्मा थे। इनके जीवनचरित्र को पढ़ने से सच्चो अहिंसामय वृत्ति को पालन करने में कितने संकटों का सामना करना पड़ता है का पता मिलता है।
२८४-०५० को देखिये ।
२८५-सात सौ मुनि एक समय ध्यानस्थ थे कि दुष्टों ने उनके चारों ओर काँटे तृण डालकर अग्नि लगा दी, लेकिन धन्य है, सात सौ ही मुनि अडिग रहे और अन्त में धर्म की जय हुई।
२८६-धर्मरुचि मुनि को किसी श्रावक ने आहार में बहुत दिनों का कड़वी तुम्बी का रायता अर्पण किया। मुनिराज आहार लेकर अपने स्थान पर आये । जब पाहार करने लगे तो पता पड़ा कि रायता अतिशय खट्टा है । आहार से निवृत होकर मुनिराज उस रायता को पात्र में लेकर बाहर अजीवाकुल स्थान पर प्रक्षेप करने गये। लेकिन उन्हें ऐसा कोई स्थान न मिला जहाँ किसी प्रकार का कोई जीवाणु न हो। निदान पाप ही उसे पी गये
और मोच-पद को प्राप्त हुए । धन्य है ऐसे महामुनियों को। • २८-ऐसा कहते हैं कि हमारे अन्दर ७४ शाह ऐसे हो गये हैं जिनके समक्ष दिल्ली-सम्राट की रिद्धि-सिद्धि अकिंचन थी
और समय पर दिल्ली के बादशाह इन अष्ठियों से ऋण सुधार लेते थे। कहते हैं कि भेष्ठियों के आगे जो 'शाह' पद लगता है यह किसी सम्राट का बन्धक रक्खा हुमा है। : २०-मानन्दष्ठिये बड़े पनान्य थे। १६ करोड