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जैन जगती
*परिशिष्ट
का है, बौद्धों का नहीं, ऐसा डा० फग्यूसन मानता है। देखो 'उत्तर हिन्दुस्तान मां जैन-धर्म' पृ० २१६ ।
२१६-तारंग-गिरि-यह तीर्थ मध्य गुजरात में आया है। महेषाणा से रेल जाती है। यहाँ पर भगवान् अजितनाथ का अतीव प्राचीन मन्दिर दर्शनीय एवं शिल्प-कला का ज्वलन्त प्रमाण है।
२१७-सिद्ध गिरि-इसे शत्रुजय और सिद्धाचल भी कहते हैं। पालीताणा नगर इसकी उपत्यका में निवसित है। इस तीर्थ की जैन-शास्त्रों में महिम महिमा है। अनंत कोटि साधु एवं केवली इस पर मोक्ष गये हैं। इसकी मन्दिरावलि देखते ही ऐसा प्रतीत होता है, मानों अमरपुरी साक्षातःमर्त्यलोक में अवतरित हो गई हो। इस तीर्थ की छटा को देखकर यूरोपीय विद्वान भी कह पड़ते हैं-'ये स्मारक देव-विनिर्मित हैं, मानवी प्रयत्नों से नहीं बने हैं-देखो उ० हि० मां० ० धर्म पृ० २१६ ।
२१८-सम्मेतशेखर-यह तीर्थ अति प्राचीन है। इसकी प्राचीनता का अभी कुछ भी पता नहीं चला है । इस पर्वत पर २० तीर्थकर मोक्ष गये हैं । यह तीर्थ बंगाल में आया है। इसका जीर्णोद्धार राजा चन्द्रगुप्त, सम्राट संप्रति, कुमारपाल एवं खारवेल ने करवाया है। इस तीर्थ के सब ही मंदिर, स्तूप शिल्पकला के उच्चकोटि के नमूने हैं।
२१५-उदयगिरि-ओरिसा की उदयगिरि-इस नाम से यह गिरि प्रसिद्ध है। इस गिरि में रानी और गणेशगुफायें शिल्प
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