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जेन-जगतीं, 20000000
परिशिष्ट
११३-राजीमती-इसका पाणि-प्रहण कुमार नेमनाथ के साथ होना निश्चित हुआ था; लेकिन कुमार नेमनाथ तो दीन पशुओं. का जो बध किये जाने को पशु-गृह में बन्ध किये गये थे, करुण रुदन श्रवण कर तोरण पर से लौट गये थे। इसने अपने देवर रथनेमी को जो इसे अपनी स्त्री बनाना चाहता था धर्म का प्रतिबोध देकर धर्म में दृढ़ किया और यह अखण्ड ब्रह्मचारिणी रहकर चारित्र-व्रत में दृढ़ रही।
११४-जयन्ती-यह शतानिक नरेश की बहिन थी। यह बड़ी पंडिता थी । इसने भगवान महावीर से अनेक प्रश्न किये थे। इसने भी दीक्षा ग्रहण कर चारित्र-धर्म पाला ।
११५-भूतदत्ता-यह नन्द राजा के मंत्री शकटाल की पुत्री और स्थूलभद्र की बहिन थी। ये सात बहिने थीं। सातों ही बहिने स्मरण-शक्ति में अद्वितीया थीं। - ११६-जमदग्नि-ये परशुराम के पिता थे। और रेणुका के साथ इन्होंने एकदिन का रात्रिप्रेम किया था।
११७-कौशिक-महर्षि विश्वामित्र को ही कौशिक कहते हैं । ये मेनका के प्रसंग से शीलभ्रष्ट हो गये थे।
११८-मथुरा के कंकाली टीलों की खुदाई में अनेक स्तूप,, मूर्तियें और शिलालेख निकले हैं। जिनसे हमारी प्राचीनता सिद्ध होती है ! देखिये वी० स्मिथ क्या लिखते हैंThe Original erection of the stupa in brick in
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