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® जैन जगती,
® परिशिष्ट
छोड़ा और अन्त में आप भी अन्तकृत-केवली होकर शिवपद को प्राप्त हुए।
५१---सुदर्शन श्रेष्टी-ये बड़े शोलवन्त थे। चंपापति राजा दधिवाहन की अभया राणी ने आप पर मिथ्या कलंकारोपण किया था और राजा ने आपको शूली पर चढ़ाये जाने की आज्ञा दी थी। लेकिन सुदर्शन श्रेष्ठी के शील के प्रताप से शूली भी पुष्पासन हो गई।
५२-स्थूलभद्र-ये राजा नन्द के मन्त्री शकटाव के पुत्र थे। आपने संसार स ऊबकर दीक्षा ग्रहण कर ली थी। आप शुद्ध संयम-व्रती थे । आपने एक बार कोशा गणिका के घर जो गृहस्थावस्था में आपकी प्रेमिका रह चुकी थी चतुर्मास किया था और उसके अनेक लोभन-प्रलोभन दिखाने पर भी आप शील में बड़े ही अडिग रहे थे।
५३-पंचपरमेष्ठि-नमस्कार मन्त्र-यह जैन धर्म का सर्वश्रेष्ठ मंगल मन्त्र है। इसमें अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु इन पाँचों परम महात्माओं को नमस्कार किया गया है।
५४-अरिहंत-द्वेषादि अभ्यंतर दोषों को जीतने वाले को अरिहंत कहते हैं । इनके अष्ट प्रातिहार्य, चार मूल अतिशय होते हैं । इनकी वाणी पैतीस गुणयुक्त होती है।
५५-सिद्ध-सिद्ध भगवान के अष्ट गुण होते हैं।
५६-आचार्य-छत्तीस गुणधारी को प्राचार्य कहते हैं। देखो पंचिंदिय सूत्र।