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जैन जगती . ® परिशिष्ट 8
REGISRFECE सकता हूँ।' राजा ने तुला मंगवाई और एक ओर कपोत को रक्खा और एक ओर अपनी देह से आमिष काटकर रक्खा । परन्तु कपोत के भार के बराबर वह न हो सका । राजा ने फिर मांस काटकर रक्खा लेकिन फिर भी कपोत के तोल के सम न हो सका; तब राजा मेघरथ स्वयं तुला पर चढ़ गये। कपोत एवं बाज दोनों प्रकट होकर कहने लगे; 'राजन् ! हम देव हैं, और आपके धर्म की परीक्षा लेने आये थे। क्षमा कीजिये।' राजा की देह पूर्ववत् हो गई और वे दोनों देव अपने-अपने स्थान को गये । हिन्दू समाज में यह कथा राजा शिवि के नाम से प्रसिद्ध है।
३०-राजा हरिश्चन्द्र सत्यवती-ये दृढ़ सत्य-व्रत के लिये सर्वत्र प्रसिद्ध हैं । ये भगवान शान्तिनाथ के समय में हुए थे। इन्होंने सत्य की रक्षा के लिये श्मशान की प्रहरी भो की थी। प्यारी प्रिया तारा को तथा प्यारे पुत्र रोहीताश्व को भी सत्य के लिये ये बेचते हुए व्याकुल नहीं हुए थे। अन्त में भगवान
शान्तिनाथ से इन्होंने संयम-दीक्षा ग्रहण की और मोक्षाराधन किया।
३१-०४ देखिये। ३२-नं० १५ से २५ देखिये। ३३-लक्ष्मण-राजा दशरथ की रानी सुमित्रा के लड़के थे और रामचन्द्र के अनुज थे। ये ८ वें वासुदेव थे। इन्होंने शक्षण को मारा था।
३४-भरत-कैकेयी के पुत्र थे और रामचन्द्र के वैमात्रेष
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